Monday, December 04, 2006

इश्क कि अर्ज़ी

फुर्सत में देखियेगा हमारी अर्ज़ी को ,
शायद वो बदल पाये अपकी मर्ज़ी को ,
फिक्र - ए - यार में हम ग़मगीन समां बनाए बैठें हैं ,
फ़ज़ल - ए -खुदा के इंतज़ार में बैठें हैं